Property Rights में बड़ा बदला, 5 मिनट में जानिए क्या अब पति की अनुमति जरूरी नहीं – हाईकोर्ट ने साफ कर दी स्थिति

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भारत में संपत्ति से जुड़े कानूनी विवादों का इतिहास काफी पुराना है, खासकर पति-पत्नी के बीच संपत्ति के अधिकार को लेकर। अक्सर यह माना जाता रहा है कि पत्नी को अपनी संपत्ति बेचने के लिए पति की अनुमति लेनी पड़ती है, लेकिन हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मिथक को तोड़ते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि प्रॉपर्टी पत्नी के नाम पर है, तो वह उसे पति की मंजूरी के बिना भी बेच सकती है। यह फैसला न सिर्फ महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को मजबूती देता है, बल्कि समाज में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम भी है।

इस फैसले की पृष्ठभूमि में एक दंपत्ति का वह मामला था, जहाँ पत्नी ने अपने नाम की संपत्ति बेच दी थी। पति ने इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि “महिलाओं को पति की संपत्ति नहीं समझा जा सकता”। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही संपत्ति की कीमत पति ने चुकाई हो, लेकिन अगर रजिस्ट्री पत्नी के नाम पर है, तो कानूनी तौर पर वह संपत्ति पत्नी की ही मानी जाएगी।

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इस मामले में, एक पत्नी ने अपने नाम पर रजिस्टर्ड प्रॉपर्टी को पति की सहमति के बिना बेच दिया था। पति ने दावा किया कि चूंकि संपत्ति की कीमत उन्होंने चुकाई थी और पत्नी के पास उस समय कोई आय नहीं थी, इसलिए पत्नी को अधिकार नहीं था। ट्रायल कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया और इसे “क्रूरता” का आधार बनाकर तलाक की डिक्री पारित कर दी। हालाँकि, हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए पत्नी के अधिकारों को स्पष्ट किया।

हाईकोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु

  • स्वतंत्र अधिकार : पत्नी को अपनी संपत्ति बेचने के लिए पति की अनुमति लेना जरूरी नहीं।
  • कानूनी वैधता : रजिस्ट्री पत्नी के नाम पर होने से संपत्ति पर उसका पूर्ण अधिकार।
  • लैंगिक समानता : महिलाओं को पति की संपत्ति की तरह नहीं माना जा सकता।
  • क्रूरता का आधार नहीं : संपत्ति बेचना क्रूरता नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार है।

संपत्ति अधिकार से जुड़े कानूनी प्रावधान

  1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 : पत्नी को पति की संपत्ति में अधिकार, लेकिन अपनी संपत्ति पर पूर्ण नियंत्रण।
  2. भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 : संपत्ति की बिक्री के लिए अनुबंध करने का अधिकार।
  3. संपत्ति अधिकार संशोधन : कानूनी रजिस्ट्रेशन के आधार पर स्वामित्व तय होता है।

संपत्ति अधिकारों का तुलनात्मक विश्लेषण

पहलूपति का अधिकारपत्नी का अधिकार
स्वामित्वअपने नाम की संपत्ति पर पूर्ण अधिकारअपने नाम की संपत्ति पर पूर्ण अधिकार
बिक्रीबिना पत्नी की अनुमति के बेच सकता हैबिना पति की अनुमति के बेच सकती है
विरासतपैतृक संपत्ति में अधिकारपति की संपत्ति में सीमित अधिकार
कानूनी सुरक्षाअनुबंध अधिनियम के तहत सुरक्षितअनुबंध अधिनियम और हाईकोर्ट फैसले से सुरक्षित

हाईकोर्ट फैसले का समाज पर प्रभाव

  • महिला सशक्तिकरण : संपत्ति पर अधिकार से आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
  • कानूनी जागरूकता : महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग होंगी।
  • पारिवारिक विवादों में कमी : स्पष्ट कानूनी प्रावधानों से झगड़े घटेंगे।

संपत्ति बेचने की प्रक्रिया में ध्यान रखने योग्य बातें

  1. रजिस्ट्रेशन दस्तावेज : संपत्ति का नाम पत्नी के नाम पर होना चाहिए।
  2. कानूनी सलाह : बिक्री से पहले वकील से परामर्श जरूर लें।
  3. टैक्स नियम : बिक्री पर लागू होने वाले टैक्स (कैपिटल गेन) का ध्यान रखें।
  4. पति की भूमिका : यदि पति ने पैसे दिए हैं, तो उनके साथ समझौता करना बेहतर।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1. क्या पति पत्नी की संपत्ति बेच सकता है?
Ans. नहीं, अगर संपत्ति पत्नी के नाम पर है, तो पति कोई दखल नहीं दे सकता।

Q2. हाईकोर्ट के फैसले का कानूनी आधार क्या है?
Ans. भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 और संवैधानिक समानता के सिद्धांत।

Q3. क्या पति संपत्ति की कीमत वसूल सकता है?
Ans. नहीं, अगर रजिस्ट्री पत्नी के नाम पर है, तो पति का कोई अधिकार नहीं।

निष्कर्ष

कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह साबित करता है कि कानूनी तौर पर पत्नी और पति के अधिकार बराबर हैं। समाज को अब यह समझना होगा कि महिलाएं किसी की “संपत्ति” नहीं, बल्कि स्वतंत्र इकाई हैं।

डिस्क्लेमर: यह लेख कलकत्ता हाईकोर्ट के वास्तविक फैसले पर आधारित है, जिसे विभिन्न समाचार स्रोतों से सत्यापित किया गया है। संपत्ति से जुड़े किसी भी कानूनी कदम से पहले अपने वकील से सलाह अवश्य लें। यह फैसला केवल उन्हीं मामलों पर लागू होता है, जहाँ संपत्ति पत्नी के नाम पर रजिस्टर्ड हो।

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