Success Story 2025: चंबल के कुख्यात डकैत के पोते ने UPSC में सफलता की नई मिसाल पेश की

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चंबल के बीहड़ों में जिनके दादा का नाम सुनकर लोग काँपते थे, आज उसी खानदान का एक लड़का भारतीय प्रशासनिक सेवा (UPSC) में 629वीं रैंक हासिल कर देश की सेवा करने जा रहा है। देव प्रभाकर तोमर, जिन्होंने नीदरलैंड में 88 लाख सालाना की नौकरी छोड़कर अपने आखिरी प्रयास में यह मुकाम हासिल किया, उनकी कहानी संघर्ष, हिम्मत और सपनों की जीत का जीवंत उदाहरण है।

देव के दादा रामगोविंद सिंह तोमर चंबल के कुख्यात डाकू थे, लेकिन उनके पिता बलवीर सिंह तोमर ने पढ़ाई की राह चुनी और संस्कृत में पीएचडी कर प्रिंसिपल बने। देव ने अपने पिता के सपनों को आगे बढ़ाते हुए IIT की पढ़ाई की, विदेश में करियर बनाया, लेकिन मन में UPSC की ललक ने उन्हें वापस भारत खींच लिया। तीन बार इंटरव्यू तक पहुँचकर भी असफल रहने के बाद, चौथे प्रयास में उन्होंने वह कर दिखाया जिसने पूरे परिवार का नाम रोशन कर दिया।

Dev Prabhakar Tomar

पहलूविवरण
नामदेव प्रभाकर तोमर
रैंकUPSC 2024 में 629वीं रैंक
शैक्षिक पृष्ठभूमिIIT स्नातक, विदेश में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत
पारिवारिक पृष्ठभूमिदादा रामगोविंद सिंह तोमर (चंबल के डाकू), पिता संस्कृत में पीएचडी धारक
नौकरी छोड़ीनीदरलैंड में 88 लाख सालाना की नौकरी
प्रयासचौथा और आखिरी प्रयास
पत्नी का योगदाननौकरी छोड़कर देव की पढ़ाई में सहयोग
तैयारी का तरीकासेल्फ स्टडी, ऑनलाइन संसाधनों का उपयोग
मुख्य संदेश“हार न मानो, खुद पर भरोसा रखो”

पारिवारिक पृष्ठभूमि: डाकू के खानदान से शिक्षा की लौ

देव तोमर का जन्म उस परिवार में हुआ जहाँ शिक्षा को जीवन बदलने वाला हथियार माना गया। उनके दादा रामगोविंद सिंह तोमर 1970 के दशक में चंबल के बागी डाकू थे, लेकिन पिता बलवीर सिंह ने शिक्षा के जरिए परिवार की दिशा बदल दी। देव बताते हैं, “लोग मुझे ताने देते थे कि डाकू का पोता क्या करेगा, लेकिन मेरे पिता ने हमेशा पढ़ाई पर जोर दिया।”

विदेश में करियर और UPSC का सपना

देव ने IIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद नीदरलैंड की फिलिप्स कंपनी में साइंटिस्ट की नौकरी शुरू की। 2019 में उन्होंने नौकरी के साथ ही UPSC की तैयारी शुरू कर दी। “मैं रात में ऑफिस से लौटकर 3-4 घंटे पढ़ता था,” लेकिन 2020 में उन्होंने नौकरी छोड़कर पूरी तरह तैयारी में जुट गए।

चौथा प्रयास: आखिरी मौका और सफलता

देव तीन बार इंटरव्यू तक पहुँचे, लेकिन चयन नहीं हो पाया। “हर बार असफलता ने मुझे और मजबूत बनाया,” उन्होंने अपने चौथे प्रयास में सिलेबस को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटकर तैयारी की। उनकी पत्नी ने नौकरी करके घर चलाया, जिससे देव बिना आर्थिक चिंता के पढ़ सके।

तैयारी की रणनीति: सेल्फ स्टडी और समय प्रबंधन

  • दैनिक दिनचर्या: सुबह 5 बजे उठकर 8 घंटे की नियमित पढ़ाई।
  • स्टडी मटेरियल: NCERT की किताबें, समसामयिकी के लिए अखबार और ऑनलाइन लेक्चर।
  • मॉक टेस्ट: हर हफ्ते 2 टेस्ट देकर कमजोरियों पर काम करना।
  • नोट्स बनाना: महत्वपूर्ण तथ्यों को चार्ट और फ्लोचार्ट में संक्षेपित करना।

पारिवारिक सहयोग: पत्नी और माता-पिता की भूमिका

देव की सफलता में उनकी पत्नी का योगदान अहम रहा। “मेरी पत्नी ने 2 साल तक नौकरी करके मेरा साथ दिया,” जबकि माता-पिता ने मानसिक रूप से सहारा दिया। देव के पिता ने हमेशा कहा, “शिक्षा ही वह हथियार है जो तुम्हें समाज में सम्मान दिलाएगी।”

संघर्ष के पल: तानों से लड़ाई और हिम्मत

देव को समाज के तानों का सामना करना पड़ा। “लोग कहते थे तुम्हारे दादा ने लूटपाट की, तुम क्या कर लोगे?” लेकिन उन्होंने इन बातों को प्रेरणा में बदल दिया। उनकी कहानी उन युवाओं के लिए मिसाल है जो सामाजिक बंधनों से जूझ रहे हैं।

भविष्य की योजनाएँ: समाज सेवा और बदलाव की ठान

देव का लक्ष्य चंबल क्षेत्र के विकास पर काम करना है। “मैं शिक्षा और रोजगार के जरिए युवाओं को गलत राह पर जाने से रोकूँगा,” वे कहते हैं। उनकी योजना ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने की भी है।

युवाओं के लिए संदेश: हार न मानने की सीख

देव युवाओं को सलाह देते हैं:

  • “लक्ष्य निर्धारित करो और छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़ो।”
  • “असफलता से डरो मत, यह सफलता की सीढ़ी है।”
  • “पारिवारिक सहयोग सफलता की कुंजी है।”

Disclaimer: यह लेख देव प्रभाकर तोमर की वास्तविक जीवन घटनाओं पर आधारित है। सभी तथ्य उनके इंटरव्यू और मीडिया रिपोर्ट्स से लिए गए हैं। यह कहानी युवाओं को प्रेरणा देने के उद्देश्य से लिखी गई है। किसी भी प्रकार की भ्रामक जानकारी या अतिशयोक्ति से बचने का प्रयास किया गया है।

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